Sunday, September 4, 2011

Immortal talent - Ganguly

I propose the following: 
The Hon. President should promulgate and ordnance declaring mandatory inclusion of Mr. Ganguly till he reaches the ripe young age of at least 85 years. To ensure Mr. Ganguly's enduring legacy at least in Kolkatta, every square in Kokatta should have statue of bat wielding Mr. Ganguly. If the populace is not satisfied with this, the idol in every temple in Kolkatta should be replaced by Mr. Ganguly. 

A list of all the miracles performed by Mr. Ganguly should be submitted to the Vatican immediately so that he can be canonised and declared as the living saint. Mr. Ganguly should be elected unopposed as the Prime Minister and President of India so that he can be the only only in the history of India to hold these two offices together. The film Sholay should be updated with Mr. Ganguly performing the role of both Jai and Viru. When Sivaji-II is made, Rajani saar should be offered the role of an extra and Mr. Ganguly should be offered the title role. 

Ekta Kapoor should be compelled to launch a serial "Kyuki Main be Kabhi KKR Ka Kaptain tha". The lead charecter obviously has to be played by Mr. Ganguly and this serial should run indefinitely. Mr. Bachchan should be replaced by Mr. Ganguly and the programme should renamed as "Kaun Bannega KKR ka Kaptain". 

Last but not the least, Mr. S.R. Khan, Mr. Greg Chappell and Mr. Kiran More should be publically flogged in Behala. I am not sure if, after all the of the above, Mr. Ganguly's chest beating "our dada" yelling fans would be pacified. If not, then our puranas should be updated and should have an 11th incarnation of Lord Vishnu as Mr. Ganguly.

अण्णा के नाम मनमोहन सिंह का ख़त


माननीय अण्णा जी,
नमस्कार!
समझ नहीं आ रहा कि क्या कहूं? क्योंकि सालों बाद ऐसा हो रहा है कि मैं अपनी तरफ से कुछ लिख रहा हूं। इससे पहले आखिरी ख़त कॉलेज़ के ज़माने में पिता जी से पैसे मंगवाने के लिए लिखा था। राजनीति में आने के बाद तो लिखा हुआ पढ़ने और बताया गया बोलने की आदत सी पड़ गई है। यहां तक कि लिखे हुए भाषण में प्रूफ की ग़लतियां तक अपनी मर्ज़ी से ठीक नहीं कर सकता।
खैर, आपने ख़त लिखकर दिल्ली सरकार और केंद्र सरकार की आलोचना की है और मुझसे हस्तक्षेप करने को कहा है। ऐसा कर जो इज्ज़त आपने मुझे बख्शी है उसके लिए मैं आपका आभारी हूं क्योंकि इससे लगता है कि आप अब भी मानते हैं कि मैं कुछ कर सकता हूं। आप एक ईमानदार और नेकदिल आदमी हैं इसलिए आज मैं आपसे दिल की कुछ बातें शेयर करना चाहता हूं।
पहली, आप लगातार कह रहे हैं कि प्रधानमंत्री को लोकपाल के दायरे में आना चाहिए। आप ऐसा क्यों कह रहे हैं? आप ही सोचिए कि अगर ऐसा हुआ तो मेरी क्या हालत होगी। मैं तो पहले ही मैडम के दायरे में हूं। ऊपर से अगर लोकपाल के दायरे में भी आ गया तो मेरा क्या हश्र होगा। तब तो मेरी और राष्ट्रपति प्रतिभा पाटील की हालत एक जैसी हो जाएगी। जिनके पास पद तो होगा लेकिन कद नहीं।
दूसरा, आपकी और आपके समर्थकों की शिकायत है कि तीन दिन से ज़्यादा भूख हड़ताल पर बैठने नहीं दिया जा रहा। मेरा मानना है कि आप चाहे जितने दिन भूख हड़ताल पर बैठें। बस, ये मत कहिए कि हम जनलोकपाल बिल की मांग को लेकर भूख हड़ताल पर बैठे हैं। वैसे भी हमें किसी के भूख से मरने की परवाह नहीं है, अगर होती तो क्या कभी ऐसा हो सकता था कि देश में हज़ारों लोग भूख से मरते रहते और सरकारी गोदामों में अनाज सड़ता रहता।
तीसरा, आप लगातार कह रहे हैं कि आपको अनशन से रोककर हम संविधान की अवहेलना कर रहे हैं। इस पर मैं इतना ही कहूंगा कि जिस देश में प्रधानमंत्री तक को स्कूल छोड़ने के साठ साल बाद भी दिन में दस बार पूछना पड़ता हो कि Madam, May I go to toilet? या आज नाश्ते में खिचड़ी खाऊं या दलिया,  उस देश में आप संविधान और मौलिक अधिकारों की बात कर रहे हैं।
कुछ व्यस्तता के चलते मैं ज़्यादा बात नहीं कर सकता। अभी मुझे इटैलियन में लिखे स्वतंत्रता दिवस के भाषण को अंग्रेजी में ट्रांसलेट करवा पंजाबी में समझते हुए रोमन में लिखवाकर हिंदी में पढ़ने की प्रेक्टिस भी करनी है। आख़िर में यही कहूंगा कि मुझे कुछ करने के लिए कह कर इज्ज़त देना अलग बात है  और ये जानते हुए कि मैं कुछ नहीं कर सकता और फिर भी कुछ न करने का ताना देना ग़लत बात है। बहुत ग़लत है। चूंकि वो वर्ल्ड बैंक से नहीं मिलती इसलिए मैं हाथ जोड़कर आपसे ‘रहम की भीख’ मांगता हूं। अपना अनशन वापिस ले लीजिए।
भवदीय,

डॉ. मनमोहन सिंह
प्रधानमंत्री, कांग्रेस पार्टी

आराम करो / गोपालप्रसाद व्यास


एक मित्र मिले, बोले, "लाला, तुम किस चक्की का खाते हो?
इस डेढ़ छटांक के राशन में भी तोंद बढ़ाए जाते हो
क्या रक्खा माँस बढ़ाने में, मनहूस, अक्ल से काम करो
संक्रान्ति-काल की बेला है, मर मिटो, जगत में नाम करो"
हम बोले, "रहने दो लेक्चर, पुरुषों को मत बदनाम करो
इस दौड़-धूप में क्या रक्खा, आराम करो, आराम करो।

आराम ज़िन्दगी की कुंजी, इससे न तपेदिक होती है
आराम सुधा की एक बूंद, तन का दुबलापन खोती है
आराम शब्द में 'राम' छिपा जो भव-बंधन को खोता है
आराम शब्द का ज्ञाता तो विरला ही योगी होता है
इसलिए तुम्हें समझाता हूँ, मेरे अनुभव से काम करो
ये जीवन, यौवन क्षणभंगुर, आराम करो, आराम करो।

यदि करना ही कुछ पड़ जाए तो अधिक न तुम उत्पात करो
अपने घर में बैठे-बैठे बस लंबी-लंबी बात करो
करने-धरने में क्या रक्खा जो रक्खा बात बनाने में
जो ओठ हिलाने में रस है, वह कभी न हाथ हिलाने में
तुम मुझसे पूछो बतलाऊँ, है मज़ा मूर्ख कहलाने में
जीवन-जागृति में क्या रक्खा जो रक्खा है सो जाने में।

मैं यही सोचकर पास अक्ल के, कम ही जाया करता हूँ
जो बुद्धिमान जन होते हैं, उनसे कतराया करता हूँ
दीए जलने के पहले ही घर में आ जाया करता हूँ
जो मिलता है, खा लेता हूँ, चुपके सो जाया करता हूँ
मेरी गीता में लिखा हुआ, सच्चे योगी जो होते हैं
वे कम-से-कम बारह घंटे तो बेफ़िक्री से सोते हैं।

अदवायन खिंची खाट में जो पड़ते ही आनंद आता है
वह सात स्वर्ग, अपवर्ग, मोक्ष से भी ऊँचा उठ जाता है
जब 'सुख की नींद' कढ़ा तकिया, इस सर के नीचे आता है
तो सच कहता हूँ इस सर में, इंजन जैसा लग जाता है
मैं मेल ट्रेन हो जाता हूँ, बुद्धि भी फक-फक करती है
भावों का रश हो जाता है, कविता सब उमड़ी पड़ती है।

मैं औरों की तो नहीं, बात पहले अपनी ही लेता हूँ
मैं पड़ा खाट पर बूटों को ऊँटों की उपमा देता हूँ
मैं खटरागी हूँ मुझको तो खटिया में गीत फूटते हैं
छत की कड़ियाँ गिनते-गिनते छंदों के बंध टूटते हैं
मैं इसीलिए तो कहता हूँ मेरे अनुभव से काम करो
यह खाट बिछा लो आँगन में, लेटो, बैठो, आराम करो।

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