Sunday, September 4, 2011

अण्णा के नाम मनमोहन सिंह का ख़त


माननीय अण्णा जी,
नमस्कार!
समझ नहीं आ रहा कि क्या कहूं? क्योंकि सालों बाद ऐसा हो रहा है कि मैं अपनी तरफ से कुछ लिख रहा हूं। इससे पहले आखिरी ख़त कॉलेज़ के ज़माने में पिता जी से पैसे मंगवाने के लिए लिखा था। राजनीति में आने के बाद तो लिखा हुआ पढ़ने और बताया गया बोलने की आदत सी पड़ गई है। यहां तक कि लिखे हुए भाषण में प्रूफ की ग़लतियां तक अपनी मर्ज़ी से ठीक नहीं कर सकता।
खैर, आपने ख़त लिखकर दिल्ली सरकार और केंद्र सरकार की आलोचना की है और मुझसे हस्तक्षेप करने को कहा है। ऐसा कर जो इज्ज़त आपने मुझे बख्शी है उसके लिए मैं आपका आभारी हूं क्योंकि इससे लगता है कि आप अब भी मानते हैं कि मैं कुछ कर सकता हूं। आप एक ईमानदार और नेकदिल आदमी हैं इसलिए आज मैं आपसे दिल की कुछ बातें शेयर करना चाहता हूं।
पहली, आप लगातार कह रहे हैं कि प्रधानमंत्री को लोकपाल के दायरे में आना चाहिए। आप ऐसा क्यों कह रहे हैं? आप ही सोचिए कि अगर ऐसा हुआ तो मेरी क्या हालत होगी। मैं तो पहले ही मैडम के दायरे में हूं। ऊपर से अगर लोकपाल के दायरे में भी आ गया तो मेरा क्या हश्र होगा। तब तो मेरी और राष्ट्रपति प्रतिभा पाटील की हालत एक जैसी हो जाएगी। जिनके पास पद तो होगा लेकिन कद नहीं।
दूसरा, आपकी और आपके समर्थकों की शिकायत है कि तीन दिन से ज़्यादा भूख हड़ताल पर बैठने नहीं दिया जा रहा। मेरा मानना है कि आप चाहे जितने दिन भूख हड़ताल पर बैठें। बस, ये मत कहिए कि हम जनलोकपाल बिल की मांग को लेकर भूख हड़ताल पर बैठे हैं। वैसे भी हमें किसी के भूख से मरने की परवाह नहीं है, अगर होती तो क्या कभी ऐसा हो सकता था कि देश में हज़ारों लोग भूख से मरते रहते और सरकारी गोदामों में अनाज सड़ता रहता।
तीसरा, आप लगातार कह रहे हैं कि आपको अनशन से रोककर हम संविधान की अवहेलना कर रहे हैं। इस पर मैं इतना ही कहूंगा कि जिस देश में प्रधानमंत्री तक को स्कूल छोड़ने के साठ साल बाद भी दिन में दस बार पूछना पड़ता हो कि Madam, May I go to toilet? या आज नाश्ते में खिचड़ी खाऊं या दलिया,  उस देश में आप संविधान और मौलिक अधिकारों की बात कर रहे हैं।
कुछ व्यस्तता के चलते मैं ज़्यादा बात नहीं कर सकता। अभी मुझे इटैलियन में लिखे स्वतंत्रता दिवस के भाषण को अंग्रेजी में ट्रांसलेट करवा पंजाबी में समझते हुए रोमन में लिखवाकर हिंदी में पढ़ने की प्रेक्टिस भी करनी है। आख़िर में यही कहूंगा कि मुझे कुछ करने के लिए कह कर इज्ज़त देना अलग बात है  और ये जानते हुए कि मैं कुछ नहीं कर सकता और फिर भी कुछ न करने का ताना देना ग़लत बात है। बहुत ग़लत है। चूंकि वो वर्ल्ड बैंक से नहीं मिलती इसलिए मैं हाथ जोड़कर आपसे ‘रहम की भीख’ मांगता हूं। अपना अनशन वापिस ले लीजिए।
भवदीय,

डॉ. मनमोहन सिंह
प्रधानमंत्री, कांग्रेस पार्टी

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